है समंदर भी अब तो दीवाना हुआ
बूँद पाने को उसकी तड़प सा रहा
वो चली हा चली वो चली मनचली
इठलाते हुए वो चली रे चली
बलखाती हुई शर्माती हुई
बेखबर अपने महबूब से वो बावरी
प्यासी वो भी है लेकिन समझती नही
दर्द उसको भी लेकिन वो कहती नही
राहे आसान नही है मुस्किल घडी
है मुहब्बत में उसको भी कुछ हो रहा
मन ही मन उसका तन मन है खिल रहा
है समंदर भी अब तो दीवाना हुआ
बूँद पाने को उसकी तड़प सा रहा
बूँद पाने को उसकी तड़प सा रहा
वो चली हा चली वो चली मनचली
इठलाते हुए वो चली रे चली
बलखाती हुई शर्माती हुई
बेखबर अपने महबूब से वो बावरी
प्यासी वो भी है लेकिन समझती नही
दर्द उसको भी लेकिन वो कहती नही
राहे आसान नही है मुस्किल घडी
है मुहब्बत में उसको भी कुछ हो रहा
मन ही मन उसका तन मन है खिल रहा
है समंदर भी अब तो दीवाना हुआ
बूँद पाने को उसकी तड़प सा रहा
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