राजनीति की नीति कहे क्या
नेत्रहीन से ये हो गए
न सुनता है न दीखता है
आचारहीन से ये हो गये
नाही कोई मानवता बची
ना लाज बची न शर्म बची
अपनों को बेचने की
अब आदत इनकी हो गयी
नेत्रहीन से ये हो गए
न सुनता है न दीखता है
आचारहीन से ये हो गये
नाही कोई मानवता बची
ना लाज बची न शर्म बची
अपनों को बेचने की
अब आदत इनकी हो गयी
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