मेरा मन जब उदास होता है
मै ही मै रहता हूँ न कोई साथ होता है
ले लेता हूँ एक छोटी सी छड़ी
चल देता हूँ अपनी बगिया में
बस वही बैठ जाता हूँ
खुरपी से मिटटी को हटाता हूँ
नन्हे नन्हे पौधों के संग होता हु जब मै
जाने कैसा सुखद एहसास होता है
उनके पत्तो से बाते करता हूँ
कुछ कहता हूँ अपनी मै
कुछ उनकी सुनता हूँ
आता है जो हवा का झोका
पौधे लहराते है पवन के संग
झूम झूम कर वो नृत्य करते है
जैसे कोई शायर झूमे होके मस्त मलंग
चीटियों की पंक्ति जाती थी उधर
मैंने पुछा तुम जाती हो किधर
उसमे से एक रूककर बोली
जाओ जी यु करो न ठिठोली
मैंने कहा रुको जरा बैठो मेरे संग
हम भी बुझा ले अपने मन की प्यास
मेरा मन जब उदास होता है
मै ही मै रहता हूँ न कोई साथ होता है
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