वो मिटटी से बनाइ सूरत थी मैंने
जाने क्या बना रहा था
वो अनजानी सी मुरत
जाने किसकी बन गयी
ना देखा था कभी अनजानी सखी
जैसे इस ह्रदय में प्यार का आगाज हो गया
क्या मिलूँगा कभी इस अनजाने चेहरे से मै
या कल्पना है कोई जिसका दीदार हो गया
जाने क्या बना रहा था
वो अनजानी सी मुरत
जाने किसकी बन गयी
ना देखा था कभी अनजानी सखी
जैसे इस ह्रदय में प्यार का आगाज हो गया
क्या मिलूँगा कभी इस अनजाने चेहरे से मै
या कल्पना है कोई जिसका दीदार हो गया
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