ये जिंदगी क्यों इतनी नीरस हो गयी यहाँ तो मेरे पास सब कुछ है सिर्फ तुम्हारे सिवा फिर भी मन में आज ऐसा क्यों प्रतीत हो रहा है क्या ये प्रेम में विरह की पीड़ा है या फिर और कुछ। कुछ भी समझ नही आ रहा है न ही कुछ करने को मन हो रहा है न ही कही आने का न ही कही जाने का ये क्या है क्या मै प्रेम से परिचित हो रहा हु या ये समय मुझे इस से अपना परिचय कराना चाह रहा है
और क्या है प्रेम की वास्तविकता क्या हम एक दूसरे से जुदा होते है तभी हमे वास्तविक प्रेम का एहसास होता है या हमारा छोटी छोटी बातो पर लड़ना झगड़ना रूठना फिर मनाना ये भी प्रेम का ही स्वरुप है हाँ मैंने कभी कभी ये एहसास जरूर किया है की जब थोड़े थोड़े अंतराल पर हम अपने परिवार से दूर होते है तो हमे अपनी कमियों का भी एहसास होता है और अपनों के प्यार का भी एहसास होता है लेकिन दूर होकर ही क्यों मै ये जानना चाहता हूँ
और क्या है प्रेम की वास्तविकता क्या हम एक दूसरे से जुदा होते है तभी हमे वास्तविक प्रेम का एहसास होता है या हमारा छोटी छोटी बातो पर लड़ना झगड़ना रूठना फिर मनाना ये भी प्रेम का ही स्वरुप है हाँ मैंने कभी कभी ये एहसास जरूर किया है की जब थोड़े थोड़े अंतराल पर हम अपने परिवार से दूर होते है तो हमे अपनी कमियों का भी एहसास होता है और अपनों के प्यार का भी एहसास होता है लेकिन दूर होकर ही क्यों मै ये जानना चाहता हूँ
की वास्तविक रूप क्या है प्रेम का कैसे उस से साक्षात्कार होगा हमारा
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