दम घुटता है इस आशियाने में कभी कभी
क्योकि सब कुछ है इसमें पर तुम नही
आती है हर पल वो आहट तुम्हारी
जब चुपके आके कान में कुछ कह जाती थी
कुछ आता था समझ में कुछ धुंधला जाता था
कभी कभी अँधेरे में भी नजर आती थी मेरी जानशी
क्योकि सब कुछ है इसमें पर तुम नही
आती है हर पल वो आहट तुम्हारी
जब चुपके आके कान में कुछ कह जाती थी
कुछ आता था समझ में कुछ धुंधला जाता था
कभी कभी अँधेरे में भी नजर आती थी मेरी जानशी
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