नैतकिता है क्या ये क्या जाने
शब्दों के बाण चलाते है
हम खुले अस्मा में सोते है
ये महलो वाले क्या जाने
ये हँसे खबर बन जाती है
ये चले खबर बन जाती है
यहाँ जाने कितनी कब्र बनी
पर किसी को सुध नही आती है
हम जिए मरे परवाह नही
अपना कोई खैरख्वाह नही
हम भूखे दिन दिन सोये
जिनके पेट भरे वो क्या जाने
है दर्द गरीबी का हमे मिला
ठंडी में मई हर रात जगा
वी ठिठुरन ठण्ड की ऐसी थी
जैसे भगवान का श्राप लगा
जिनके तन पर मखमली वस्त्र
वो इस सिहरन को क्या जाने
वो इस सिहरन को क्या जाने
शब्दों के बाण चलाते है
हम खुले अस्मा में सोते है
ये महलो वाले क्या जाने
ये हँसे खबर बन जाती है
ये चले खबर बन जाती है
यहाँ जाने कितनी कब्र बनी
पर किसी को सुध नही आती है
हम जिए मरे परवाह नही
अपना कोई खैरख्वाह नही
हम भूखे दिन दिन सोये
जिनके पेट भरे वो क्या जाने
है दर्द गरीबी का हमे मिला
ठंडी में मई हर रात जगा
वी ठिठुरन ठण्ड की ऐसी थी
जैसे भगवान का श्राप लगा
जिनके तन पर मखमली वस्त्र
वो इस सिहरन को क्या जाने
वो इस सिहरन को क्या जाने
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