सूखे पत्तो सी बेजान हो गयी है ,
मद्धम मद्धम सांसे फिर भी चल रही है ,
सपने सारे टूट गए है,
फिर भी जीने कि एक आशा है ',
जानते हम भी ये मकान है रेत का,
कब बिखर जाए ये पता नही ,
मै भी खो जाऊँ शायद इसी रेत में कही ,
जब कभी ढूंढें ये जमाना मुझे
जब कभी ढूंढें ये जमाना मुझे। ……………। ……… ................... …। …
मद्धम मद्धम सांसे फिर भी चल रही है ,
सपने सारे टूट गए है,
फिर भी जीने कि एक आशा है ',
जानते हम भी ये मकान है रेत का,
कब बिखर जाए ये पता नही ,
मै भी खो जाऊँ शायद इसी रेत में कही ,
जब कभी ढूंढें ये जमाना मुझे
जब कभी ढूंढें ये जमाना मुझे। ……………। ……… ................... …। …
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