गुजरी गलियो में मुहब्बत का नाम लेना गुनाह था
नजरे हर पल झुकी रहती थी समाज की दक़ियानूसी के तले
कभी गुजरते थे हिम्मत करके डरते डरते
कभी रुक जाते थे कदम चलते चलते
नजरे हर पल झुकी रहती थी समाज की दक़ियानूसी के तले
कभी गुजरते थे हिम्मत करके डरते डरते
कभी रुक जाते थे कदम चलते चलते
0 comments:
Post a Comment