अध्यात्म हमारे जीवन का अभिन्न अंग है जो हमारे शरीर के प्रत्येक भाग
में बसा हुआ है और इसमें खोकर अद्भुत आनंद की अनुभूति होती है ये हमारे ऋषि
मुनियो के तेज का प्रतीक है प्राचीन काल से हम इस योग को करते चले आ रहे
है लेकिन अब न जाने क्यों हमारी आज की पीढ़िया ये भूलती चली जा रही है
अगर हम अपनी संस्कृति और सभ्यता को ऐसे ही भूलते रहे तो ये निश्चित है की
ये विलुप्त हो जाएँगी और अगर ये विलुप्त हुई तो समझ लो की श्रिष्टि का
अंत निश्चित है
मेरा विनम्र निवेदन है इसको जीवित रखो न सिर्फ अपने समाज में अपितु अपने तन में अपने मन में अपने जीवन में
जय श्री राधे कृष्णा
मेरा विनम्र निवेदन है इसको जीवित रखो न सिर्फ अपने समाज में अपितु अपने तन में अपने मन में अपने जीवन में
जय श्री राधे कृष्णा
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