क्यों होता है कभी कभी जब हम जीते हुए भी मरना चाहते है, परिस्थतियो के वसीभूत क्यों होते है, क्यों हम एक तपती आग में जलते रहते है, कुछ हमारे जीवन में ऐसी घटनाये घटित होती है जिनको स्वीकारना और उनका सामना करना बहुत ही मुस्किल होता है ना हम कुछ कह पाते है ना ही कुछ कर पाते है बस और बस उसके बारे में सोच सोच कर अन्दर ही अन्दर घुटते रहते है, हां ये जरूर है की वो एक कल्पना मात्र होती है और उसके दो पहलू होते है ,एक तो वो सच हो सकती है और दुसरे पहलू पर गौर करे तो झूठ भी हो सकता है
लेकिन ये मात्र और मात्र परिस्थितियों पर निर्भर करता है वोही हमारी सोच का निर्माण करती है और वो सोच वो कल्पना हमारे उपर हावी होने लगती है ऐसी परिस्थिति में हम कुछ भी सोचने और समझने में सक्षम नही होते है हम वही सोचते है और समझते है जैसा उस समय हम देखना चाहते है
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