कभी कभी बेकसूर होते हुए भी हम कुसूर वार बन जाते है कुछ भी नही किया होता है लेकिन गुनहगार बन जाते है गुनाहे अंजीम के हकदार बन जाते है तेरे ना होने पर लाचार हो जाते हैक्या आधार है इस जीवन का निराशाओ की सीमा है क्या क्या दो आँखे होने पर भी लोग एक आँख से देखने पर विवस है चाहे किसी का जीवन तहस नहस हो जाये वो गन्दी मानसिकता के जैसे सिकार हो जाते है और अपनी बुरी आदतों से लाचार हो जाते है एक अछूत बीमारी का शिकार हो जाते है दुखो के जैसे लाखो पहाड़ बन जाते है फिर भी हम हर कुछ सहने को तैयार हो जाते है कभी कभी बेकसूर होते हुए भी हम कुसूर वार बन जाते है कुछ भी नही किया होता है लेकिन गुनहगार बन जाते है
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