ek muskaan: सोलह श्रृंगार से सजूँगी आज मै: सोलह श्रृंगार से सजूँगी आज मै माथे पे चमकीली बिंदी और मांग में कुमकुम भरूँगी इंतज़ार पल पल करूंगी निर्मोही चन्दा का आज अपने पिया के बाहो...
ये कैसा अभिशाप है
ये कैसा अभिशाप है मैंने क्या पाप किया है क्या आज के जीवन में गरीबी अभिशाप है मै कल भी पूछता था और आज भी पूछता हु और सायद कल …Read More
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