मै राह में पड़ा रहा कई सदियों से कितने आये कितने चले गये किसी ने ठोकर मारी मुझको तो किसी ने रस्ते से ही हटा दिया किसीको ठोकर लगी मुझसे तो कोई ठोकर मार कर चला गया लेकिन मै था तन्हा तन्हा और हर पल अकेला ही चलता गया लोग कहते है बहुत ही हीन भावना से की मै पत्थर हु हाँ मै पत्थर हु तो मेरी खता है क्या इसमें किसी ने मारा मुझे किसी ने हटा दिया मै तो बस इधर से उधर उधर से इधर लुढकता रहा किसी को कुछ हुआ किसी ने कुछ किया तो मेरी संज्ञा दे दी गयी की वो पत्थर दिल है लेकिन क्या मुझको दर्द नही होता मुझे भी अकेलेपन का एहसास होता है मुझे भी तन्हाइया तन्हा रातो में डराती है मेरा भी मन होता है की मेरा कोई अपना हो मै भी जिसका सपना बनू किन्तु ये समाज संवेदनहीन हो गया मुझ पत्थर में तो जान आ गयी लेकिन ये जिन्दगी वाले कब पत्थर बन गये इसका संज्ञान इनको ही नही चलो देखता हु कब तक दर्द सहता हु कब तक तन्हा तडपता हु कब तक लोग तड़पाते है मै पत्थर नही हु ये बताना है कुछ करके दिखाना है श्री राम का इन्तजार कब तक करू मै मै इंसान बन गया पत्थर से और ये जीते जागते पत्थर बन गये ये बताना है
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