ये कैसा अभिशाप है मैंने क्या पाप किया है क्या आज के जीवन में गरीबी अभिशाप है मै कल भी पूछता था और आज भी पूछता हु और सायद कल भी यही सवाल होगाकी क्या गरीब होना पाप है दासता तो हमे वरदान में मिली है जिन्दगी बस और बस इसी चूल्हे चौके में बीती है सपने भी देखने का हक़ नही है हमे और हम खुशियों के मोहताज है बस हर लम्हा धीरे धीरे निकल रहा है कभी तपती दोपहर में तो कभी चुभती है सर्द हवाएपल तब भी नही कटतापल अब नही कटता कभी तो इस मजबूरी से थोड़ी दूरी हो जाए मगरलगता है इससे भी बचपन का साथ है दो वक़्त की रोटी के लिए हम कैसे तरसते है तो कुछ लोग मखमली रोटियों को रोड पर फेकते है इक आह सी निकलती है ये सब देखकर ये भी जाने कैसा एहसास है ये कैसा अभिशाप है ये कैसा अभिशाप है
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