समलैंगिकता के जेनेटिक कारण क्या हैं?
●Is There A Gay Gene?●
.
सुप्रीम कोर्ट द्वारा समलैंगिकता को अपराध मुक्त करने के बाद मैं देख रहा हूँ कि समलैंगिकों के खिलाफ अतिरंजित चुटकुलों की बाढ़ आ गई है। एक एजुकेशनिस्ट होने के नाते मेरा काम किसी भी मुद्दे के वैज्ञानिक पक्ष पर रोशनी डालना है। चुटकुलों से इतर इस व्यवहार पर सार्थक चर्चा के इच्छुक मित्रों के लिए मैं इस विषय पर उपलब्ध वैज्ञानिक जानकारियों को इस लेख में प्रस्तुत कर रहा हूँ। चूंकि स्त्री समलैंगिकता पर बहुत अधिक शोध अभी नही हुए हैं इसलिये यह लेख सिर्फ पुरूष होमोसेक्सुअलिटी पर है।
.
विश्व के कई केसेस में पाया गया है आइडेंटिकल जुड़वा बच्चों में भी एक बच्चा गे हो सकता है तो दूसरा सामान्य जबकि दोनों समान जींस धारण करते हैं। तो जाहिर है कि समलैंगिकता का कारण कोई जीन विशेष नही।
तो क्या कारण है?
उत्तर है एपीजेनेटिक्स (Epigenetics)
.
इसे समझने के लिए हमें DNA Methylation नामक प्रक्रिया को समझना पड़ेगा। इस प्रक्रिया के अंतर्गत कार्बन और हाइड्रोजन अणुओं के कुछ समूह (Methyl Groups) डीएनए में जुड़ जाते हैं जिससे डीएनए सीक्वेंस समान रहने के बावजूद प्राणियों में एक नये व्यवहार का प्राकट्य होता है।
इसका एक आसान उदाहरण चींटियां हैं जो एक समान जीनोम से जन्म लेती हैं बावजूद उसके Methylation रूपी जेनेटिक मार्कर्स के कारण चींटियों में "वर्कर-रानी-सोल्जर" जैसी क्लास का प्राकट्य होता है।
वैज्ञानिकों ने पाया है कि किसी गे अथवा स्ट्रेट व्यक्ति के सेक्सुअल जीन्स में कोई खास फर्क नही होता बल्कि गे की जीन्स के कुछ हिस्से Methylation के कारण एक्टिव होते हैं तो एक सामान्य आदमी के सुसुप्त। वैज्ञानिक डीएनए के 9 क्षेत्रों में Methylation Patterns का अध्ययन करके लोगों की यौन प्रवृति की भविष्यवाणी करने में सफल हो चुके हैं जो इस बात का मजबूत साक्ष्य है कि यौन व्यवहार व्यक्ति के डीएनए में है।
इसका एक अर्थ यह भी है कि समलैंगिकता का रॉ मैटेरियल हम सभी के अंदर जन्म से ही मौजूद है।
.
तो क्या समलैंगिकता कोई बीमारी है?
बीमारी बाहरी कारणों (केमिकल्स-बैक्टेरिया) आदि के अतिक्रमण से उत्पन्न हुई एक जीवनघाती परिणाम है जबकि समलैंगिकता व्यक्ति के मूल डीएनए स्ट्रक्चर का हिस्सा। ना ही किसी समलैंगिकता के कारण आज तक किसी व्यक्ति के शरीर मे कोई जीवनघाती नकारात्मक प्रभाव उत्पन्न हुए हैं तो आखिर सिर्फ एक अलग यौन व्यवहार प्रदर्शित करने वाले व्यक्ति को बीमार कहने का हमें क्या हक है?
मेरे ख्याल से इसे बीमारी की बजाय सेक्सुअल माइनॉरिटी कहना ज्यादा उचित होगा।
.
क्या होमोसेक्सुअलिटी के कारण एड्स फैलता है?
नही... जिसको एड्स है वो चाहें गुदासेक्स करें अथवा योनि के द्वारा। एड्स दोनों ही स्थिति में फैलेगा। गुदासेक्स पहले से ही विश्व की एक बड़ी आबादी द्वारा प्रैक्टिस किया जाता है। इसमें कोई नयी बात नही।
.
क्या जीन एडिटिंग द्वारा समलैंगिकता को खत्म किया जा सकता है?
शायद हां। भविष्य में जीन एडिटिंग द्वारा मनचाहे मानवों को जन्म दिया जा सकेगा लेकिन जीन एडिटिंग द्वारा एक अलग यौन व्यवहार धारण करने वाले किसी समूह को नैतिकता के नाम पर खत्म कर देना एक बड़ी बहस को जन्म देगा। विकृति और बीमारी में फर्क होता है।
हमें क्या हक कि हम किसी चीज को विकृति कह कर बीमारी की संज्ञा दें अगर वो व्यवहार हमारी प्रकृति के अनुरूप नही?
क्या हो अगर भविष्य में वैज्ञानिक और तकनीकी सत्ता के दम पर समलैंगिकों का समूह हमें "विकृत" करार देकर हमारा अस्तित्व मिटा देने की सोचें?
ये प्रश्न गंभीर हैं। विचारणीय भी। इनके उत्तर भविष्य के गर्भ में छुपे हैं।
.
तो अगर रिप्रोडक्शन ही प्रकृति का मूलमंत्र है और जाहिर है कि होमोसेक्सअल अन्य लोगों के मुकाबले विपरीत सेक्स में कम शादी करते है तो जन्मदर कम होने के बावजूद प्रकृति रिप्रोडक्शन के मानकों पर असफल इस व्यवहार को क्यों ढो रही है? कहने को आधिकारिक रूप से विश्व की 5 से 15% जनसंख्या समलैंगिक है लेकिन सामाजिक परिस्थितियों के कारण मुंह नही खोल पाने के कारण ये आंकड़े सही नही है। वास्तविकता इससे कहीं अधिक विशाल है। आज हर 5 में से एक आदमी अंदरूनी तौर पर गे रूप में जन्म ले रहा है। यहां ध्यान रखिये गे होने का एकमात्र अर्थ गुदामैथुन करने से नही बल्कि पुरुष में Feminine Psychological Behaviour से भी है।
मनुष्यों के अतिरिक्त पृथ्वी पर पायी जाने वाली प्रत्येक जैवप्रजाति में भी समलैंगिक यौन व्यवहार क्यों परिलक्षित होता है?
यह एक समस्या है जिसने वैज्ञानिकों का दिमाग घुमा रखा है और इसका कोई ठीक-ठाक जवाब फिलहाल उपलब्ध नही है।
.
कई सर्वेक्षणों में पाया गया है कि समलैंगिक Social Bonding, Empathy, Careness के मानकों पर बेहद खरे पाये गए हैं तथा दूसरों की पीड़ा बेहतर रूप से समझते हैं। विकासक्रम के दौरान मानव बस्तियां बसाकर सामाजिक रूप से विकसित होती इंसानी सभ्यताओं में परिवारों को जोड़ने में समलैंगिकों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई हो सकती है। आज भी कई स्टडी में पाया गया है कि समलैंगिकों के परिवार की महिलाओं में जन्म दर अधिक होती है और समलैंगिक स्वयं संतानोत्पत्ति नही करके अपने आसपास मौजूद महिलाओं का ध्यान रखने और उनके बच्चों के लालन-पोषण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते देखे गए हैं।
.
कई सर्वेक्षणों के अनुसार हर औलाद के बाद परिवार में एक गे संतान उत्पन्न होने की प्रायिकता 33% बढ़ जाती है। ज्यादातर केसेस में 3-4 संतान के बाद गर्भवती महिला ऐसे हार्मोन्स का स्त्राव करती है जो उसके अगले बच्चे में समलैंगिकता के जेनेटिक मार्कर्स को एक्टिवेट कर देते हैं ताकि वो संतान स्वयं संतान उत्पन्न नही करके अपने सामाजिक ताने-बाने को सुदृढ करने और अपने भाई-बहनों की संतानों तथा माँ का ख्याल रखने में भूमिका निभाये।
क्या होमोसेक्सयूलिटी प्रकृति द्वारा निर्धारित कोई Secret Qualitative Population Control Program हो सकता है?
शायद...
तो क्या समलैंगिक होना ही सामान्य से बेहतर है? ऐसा भी नही... क्योंकि ऐसा होता तो प्रकृति में सिर्फ समलैंगिक ही पाये जाते।
बेहतर शोधों के साथ इस विषय पर हम बेहतर जान पाएंगे।
.
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद यूं लगा मानों देश में, स्कूलों में, पाठ्यक्रम में, पारिवारिक संस्थाओं में होमोसेक्सुअलिटी एक अनिवार्य प्रैक्टिस घोषित कर दी गई हो।
"गांडू-छक्के" जैसे विशेषणों से समलैंगिकों को नवाजती अतिरंजित पोस्टों की बाढ़ आ गई।
आखिर अपनी ही प्रजाति के मनुष्यों से घृणा का यह महोत्सव भारत के अलावा कहाँ उपलब्ध होगा?
आखिर इतनी नफरत का सैलाब उनके लिये क्यों जो यह जानते भी नही कि प्रकृति ने उन्हें हम सबसे अलग क्यों बनाया है?
.
हमनें उनपर एहसान कर दिया कि बिना बेइज्जत हुए रहना है तो अपने बेडरूम में रहो। आइडेंटिटी पॉलिटिक्स मत खेलों।
मैं पूछता हूँ कि आखिर क्या गुनाह है एक समलैंगिक का कि उसे वसुधैव कुटुंबकम का उद्घोष करने वाली, कण-कण को ईश्वरीय कृति बता कर प्रेम का संदेश देने वाली सभ्यता के नुमाईंदों के बीच सार्वजनिक रूप से इस स्वीकारोक्ति तक का अधिकार नही कि वो हम सब से अलग है?
समलैंगिकता कोई छूत की बीमारी नही जो समलैंगिक के सामने आने से फैल जाएगी और विश्व के सभी मानव सड़कों पर गुदामैथुन का पर्व मनाने को उद्यत हो जाएंगे।
.
जीवविज्ञान की समझ नही? मनुष्यता की परिभाषा पता नही?
समाज द्वारा सदियों से आतंकित भय में जीते एक समुदाय की पीड़ा का आभास नही?
प्रकृति द्वारा उत्पन्न किये प्राणियों के प्रति करुणा का बोध नही?
तिस पर अहंकार खुद को सभ्य कहने का?
धिक्कार है !!!
.
समाज को समलैंगिकता को स्वीकार करने में समय लग सकता है। समाज पहले भी कई वर्जनाओं को तोड़ आगे बढ़ा है। इस बार भी समाज अपनी राह स्वयं तलाश लेगा।
फिलहाल व्यक्तिगत रूप से मुझे किसी समलैंगिक से कोई खास समस्या नही है। मेरे व्यक्तिगत आकलन में वे सभी पूरी तरह नार्मल हैं।
.
मैंने किसी भी व्यक्ति की निजता, सम्मान, स्वतंत्रता से कभी समझौता नही किया है।
ना ही कभी भी करूँगा।
I Would Personally Never Call Something "Disorder" If That Is Not According To My Familiar Order !!!
***************************
And As Always
Thanks For Reading !!!
#झकझकिया
0 comments:
Post a Comment