ब्रह्मांड में सफर करते मानवता के एक गीत की कहानी
●Dark Was The Night, Cold Was The Ground●
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5 सितंबर, 1977: समय के अमर पन्नों पर अंकित यह वो तारीख है जब पृथ्वी नामक ग्रह पर मौजूद एक अत्याधुनिक सभ्यता (मानवों) द्वारा वॉयेजर-1 नामक अंतरिक्षयान सौरमंडल के बाहरी ग्रहों के अध्ययन हेतु प्रक्षेपित किया गया था। वॉयेजर अगले तीन वर्षों तक बृहस्पति और शनि ग्रह के चन्द्रमाओं का अध्ययन करता रहा और एक बेहतरीन सेवक की तरह प्राप्त डाटा को पृथ्वी पर बैठे मानवों को रेडियो वेव्स के रूप में प्रेषित करता रहा। उसके बाद वॉयेजर का काम खत्म हो गया।
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स्पेस में प्रेक्षित यानों को काम खत्म होने के बाद पृथ्वी पर वापस सुरक्षित ला पाना बेहद खर्चीली और दुरूह प्रक्रिया है इसलिए ऐसे मामलों में हम इंसान इन अंतरिक्षयानों को इनके हाल पर छोड़ देते हैं।
अब चूंकि सुदूर अंतरिक्ष मे लगभग निर्वात होने के कारण इन यानों की गति को घर्षण से क्षीण करने के लिए पदार्थ तो मौजूद है नही इसलिए ऐसे यान बिना रुके करोड़ों वर्षों तक अंतरिक्ष में अपनी यात्रा जारी रखते हैं (जब तक कि कोई चीज टकरा कर इनका रास्ता ना रोक दे)
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41 वर्ष और 9 दिनों से सतत गतिमान वॉयेजर 14 सितंबर, 2018, समय शाम 3:40 बजे (इस पोस्ट को लिखते समय) पृथ्वी से इक्कीस अरब चौवालीस करोड़ आठ लाख सैंतीस हजार एक सौ पंद्रह किलोमीटर दूर मौजूद है। वॉयेजर में लगे प्लूटोनियम आधारित ऊर्जा संयंत्र आगामी कुछ सालों तक आवश्यक कम्युनिकेशन हेतु ऊर्जा प्रदान करते रहेंगे। उसके बाद वॉयेजर की नियति ब्रह्मांड के अंधेरों में हमेशा के लिए खो जाना है।
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वॉयेजर यान में हमनें ब्रह्मांड में पृथ्वी की स्थिति का नक्शा, फिजिक्स, केमिस्ट्री और गणित के कुछ फंडामेंटल्स, मानव डीएनए के चित्र आदि कई चीजें छोड़ी हैं। ताकि अगर भविष्य में किसी सुदूर तारे के नजदीक मौजूद कोई एलियन सभ्यता वॉयेजर के संपर्क में आती है तो शायद वॉयेजर में मौजूद इन संदेशों को किसी तरह समझकर वे जान पाएंगे कि वे ब्रह्मांड में अकेले नही हैं।
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वॉयेजर में एक गोल्ड प्लेटेड पोनोग्राफ डिस्क भी है जिसमें हमने इंसानों, जानवरों, बच्चों की आवाजें, बादलों की गर्जनाएँ, बिजली की तड़तड़ाहट, तूफानों का शोर आदि कई आवाजों को रिकॉर्ड किया है। पृथ्वी पर मौजूद विभिन्न भाषाओं में प्रचलित संगीतों के सैम्पल्स भी इस डिस्क पर संग्रहित किये गए हैं। इन संगीतों की धुनों में एक ऐसी ऐसी धुन है जो मुझे बेहद प्रिय है।
इस धुन का नाम है...
Dark Was The Night
Cold Was The Ground !!
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ये गाना गिटार की धुन पर गूंजती एक शब्दहीन गुनगुनाहट मात्र है जिसे सुनकर ऐसा लगता है कि मानों कोई अवसादग्रस्त इंसान आसमान की विराट रिक्तता को देखकर सोने की कोशिश रहा हो। यह गाना प्रतिध्वनित करता हैं उन सभी इंसानों के नैराश्य को जिन्होंने कई लाखों वर्ष सर्द रातों में नंगे बदन ठिठुरते हुए रात के आसमान में दमकती इन रौशनियों को देख कर इस सवाल के साथ बिताए हैं कि "क्या हम अकेले हैं?"
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दुःख और अवसाद को प्रतिध्वनित करने वाले इस कालजयी गाने को 1927 में रचने वाले "विली जॉनसन" की खुद की जिंदगी भी कम अवसादपूर्ण नही थी।
1897 में टेक्सास (अमेरिका) में जन्में विली जॉनसन की माँ 5 वर्ष की आयु में मर गई थी। 7 वर्ष की आयु में सौतेली माँ ने पिता के साथ हुए किसी झगड़े में कोई गरम तरल द्रव विली पर फेंक दिया था जिस कारण उनकी आंखों की रोशनी चली गई। जीवन भर गरीबी से जूझते अंधे विली सड़कों पर गिटार बजा कर अपना पेट पालते रहे।
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1945 में विली जॉनसन का घर किसी आगजनी में जल गया था। इसी बीच मलेरिया हो जाने पर सिर्फ अश्वेत होने के कारण लोकल अस्पतालों ने विली का इलाज करने से मना कर दिया था और वाजिब भी था।
यह वो समय था जब अमेरिका में एक काले का गोरों के साथ टॉयलेट इस्तेमाल करना, बस में साथ बैठ पाना तक संभव नही था तो आखिर एक काले को अस्पताल में भर्ती करने जैसा जघन्य अपराध कौन अपने सर मोल लेता?
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इन सबके बीच 18 सितंबर, 1945 में विली की मौत तब हुई जब मलेरिया से जूझते हुए रहने का ठिकाना नही होने के कारण विली जले हुए घर के ध्वंसावशेषों के बीच रहने के लिए मजबूर थे और अखबार के गीले टुकड़ों पर सोने के अलावा कोई विकल्प उपलब्ध नही था।
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और आज... उसी विली जॉनसन के गिटार से निकली एक धुन... सुदूर ब्रह्मांड में अरबों किलोमीटर दूर मौजूद है
और मानवता का प्रतिनिधित्व कर रही है !!!
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आज रात अपनी छत पर जाइये।
इन टिमटिमाते तारों को देखते हुए यूट्यूब खोलिए और सुनिए...
Dark Was The Night
Cold Was The Ground !!!
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And As Always
Thanks For Reading !!
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