●Why Can't We Remember Our Early Childhood?●
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ऐसा हम सबके साथ क्यों होता है कि अधिकतम हम दो वर्ष की आयु तक के ही अनुभव याद रख पाते हैं और उससे पूर्व के अनुभवों को खो देते हैं?
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ऐसा नही है कि बचपन में हम चीजों को याद रखने में असमर्थ होते हैं। स्मृति दो प्रकार की होती हैं। हमारे माँ-बाप कौन हैं, हमारे पहचान के लोग कौन हैं आदि सर्वाइवल के लिए आवश्यक स्मृतियां Semantic Memory कहलाती हैं जिन्हें एक बच्चा अच्छे से याद रखता है क्योंकि ये यादें दिमाग के जिन हिस्सों (Sign, Pattern, Face Recognition) में स्टोर होती हैं, वे जन्म के कुछ समय के अंदर ही परिपक्व हो जाते हैं।
पर स्वयंकेन्द्रित घटनाक्रम के विवरणों को स्टोर करने वाला दिमाग का हिस्सा "हिप्पोकैम्पस" लगभग दो वर्ष की आयु के बाद परिपक्व होना शुरू होता है। यह दिमाग का वह हिस्सा है जो आपको "व्यक्तिगत चेतना"का बोध कराता है। इसी हिस्से में चोट अथवा किसी अन्य डिसऑर्डर के कारण इंसान में अल्झाइमर जैसी बीमारियां जन्म लेती हैं।
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दिमाग एक कंप्यूटर के मदरबोर्ड की तरह है। इसकी स्टोरेज क्षमता सीमित है। यह सिर्फ उन्ही अनुभवों को तरजीह देता है जो जीवन मे सर्वाइव करने के लिए किसी ना किसी रूप में काम आएं इसलिए यह आपके द्वारा सीखे गए Skills और नेगेटिव अनुभवों को दिमाग में परमानेंटली स्टोर करता है।
व्यक्तिगत अनुभव मस्तिष्क को अनावश्यक प्रतीत होते हैं इसलिये मस्तिष्क व्यक्तिगत अनुभवों के स्पेस पर नित नये अनुभवों को Over Write करता रहता हैं। ठीक उसी प्रकार जैसे आप अपने मोबाइल में पुरानी फाइलों को डिलीट करके नये-नये एप्प्स डाउनलोड करते रहते हैं। यही कारण है कि सिर्फ बचपन ही नही बल्कि उम्र भर जीने के बावजूद सहेजने योग्य व्यक्तिगत अनुभव बेहद नगण्य होते हैं।
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बहरहाल सवाल यहां यह भी उठता है कि अगर हमारे दिमाग का पूरा विकास होने में जन्म के बाद भी इतना समय लगता है तो आखिरकार हम जन्म से ही एक विकसित दिमाग लेकर पैदा क्यों नही हो सकते? ज्यादातर जीवों के बच्चें जन्म के कुछ समय बाद ही जीवन संग्राम हेतु तैयार हो जातें हैं वहीं प्राइमेट वर्ग के जीवों खासकर इंसानों की औलादें इतनी असहाय पैदा होती है कि जन्म के बाद महीनों तक उठकर बैठने तक मे सक्षम नही हो पाती? ऐसा क्यों?
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इसका दो जवाब हैं।
पहला यह कि एवोलुशन एक पूर्णतः भौतिक प्रक्रिया है जो Adding More Stuff To Previous के सिद्धांत पर कार्य करता है। इसलिए हम एक कोशिका के रूप में जन्म लेते हैं और तत्पश्चात हमारा विकास शुरू होता है।प्रकृति में जीवन-चेतना का प्राकट्य विकासवाद की प्रक्रिया के अंतर्गत ही संभव है जिसमें समय लगता है।जाहिर है कि चौथी मंजिल पर पहुंचने के लिए पहली और दूसरी मंजिल का निर्माण अनिवार्य है। इंसानी दिमाग चूंकि पृथ्वी पर मौजूद जीवों में जटिलतम है इसलिए इसे पूरी तरह विकसित होने में और ज्यादा समय लगता है।
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दूसरा यह कि हम इंसान "शरीर-मस्तिष्क" के आकार के अनुपात के आधार पर पृथ्वी का विशालतम मस्तिष्क धारण करते हैं। दो पैरों पर चलने के कारण मानव मादाओं की कोख छोटी और योनि मार्ग बेहद संकरा है जिस कारण अपेक्षाकृत अधिक विकसित दिमाग वाले बड़े आकार के इंसानों को जन्म देना संभव नहीं है। कई शोधों में पाया गया है कि इंसानी मादाओं के शरीर की मेटोबोलिक क्षमता 9-10 महीनें तक के शिशु के पोषण को ही वहन कर सकती है।
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Conclusion: हम बचपन की व्यक्तिगत यादें भूल जाते हैं क्योंकि हम एक अविकसित दिमाग के साथ जन्म लेते हैं। व्यक्तिगत अनुभव सहेजने वाले दिमाग के हिस्सों को परिपक्व होने में दो-चार वर्ष का समय लगता है।
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कमेंटबॉक्स में बताइये कि आपको अपने बचपन से जुड़ी सबसे पुरानी बात कौन सी याद है?
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And As Always
Thanks For Reading !!
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