कल हर तरफ शोर था कि सीवर गैस से चूल्हा कैसे जल सकता है? अब जब ये साफ हुआ कि सीवर गैस के इस्तेमाल से दुनिया मे अनेकों लोग, इंडस्ट्रीज़, कारपोरेशन ऊर्जा उत्पन्न कर रहे हैं तो बहस का मुद्दा ये हो गया कि मोदी का तरीका गलत था।
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मैंने प्रधानमंत्री का वीडियो देखा। प्रधानमंत्री ने किसी युवक का उल्लेख करते हुए कहा कि युवक ने नाली (पहले नाली कहा, फिर गटर) से पाइप के द्वारा किसी पात्र में गैस इकट्ठी की और चूल्हा जला लिया। औऱ बक़ौल मोदी अक्सर ये गैस लोग टायर ट्यूब में भर के इस्तेमाल भी करते हैं।
टायर, ट्यूब में गैस भरना कोई बड़ी बात नही है। कई लोग करते हैं। यह टायर कितने हैवी ऍप्लिकेशन्स में काम आ सकता है, यह बहस का मुद्दा है।
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दूसरी बात... एक चलती नाली से मीथेन इकट्ठी करना अव्यवहारिक ही प्रतीत होता है। ज्यादातर मीथेन प्रोडक्शन सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट्स द्वारा बन्द सिस्टम्स में किया जाता है।
मोदी की कहानी के नायक की सफलता के पीछे का तकनीकी पक्ष मैं नही जानता कि उसने ये प्रयोग कहाँ किया लेकिन रुके हुए पानी वाले किसी गटर या मैनहोल में पाइप डालकर मीथेन इकट्ठी करना कोई असंभव बात नही है। मीथेन की Yield हर जगह एक जैसी नही होती। पानी मे आर्गेनिक वेस्ट बढाकर, फर्मेंटेशन की प्रक्रिया को तेज करके मीथेन प्राप्ति की दर बढाई जा सकती है और प्राप्त गैस को बेहद सामान्य सेटअप द्वारा किसी कंटेनर में आराम से इकट्ठा किया जा सकता है। गैसोमीटर से ट्रैक किया जा सकता है कि कितनी मीथेन प्राप्त हो रही है। सिर्फ 0.3 से 0.9 घनमीटर गैस एक चूल्हा जलाने के लिए और 0.1 से 0.15 घनमीटर गैस एक लैंप को रोशन करने के लिए काफी है।
इसमें मुझे कुछ भी अवैज्ञानिक प्रतीत नही होता।
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जहां तक मोदी की बात है तो बेशक ऐसा नही होता कि आप इधर पाइप गटर में डालें और उधर चूल्हा जल जाए। हर चीज की एक प्रोसेस होती है। मुझे लगता है कि मोदी ने एक घटना का सामान्यीकरण मात्र किया है जिसे बहुत तूल देने की जरूरत नही है। एक सार्वजनिक मंच से किसी वैज्ञानिक प्रक्रिया के सभी तकनीकी पक्ष डिस्कस भी नही जा सकते।
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बहरहाल... एक चाय वाला कम से कम लोगों को एक वैज्ञानिक तकनीक के प्रति प्रेरित कर रहा है तो उससे विरोध क्यों? जाहिर है कि हर आदमी गटर के पास स्टोव लेकर नही बैठ जाएगा
लेकिन... तकनीक के प्रति लोगों की रुचि विकसित करना और वैज्ञानिक दृष्टिकोण का प्रचार-प्रसार राष्ट्रनिर्माण में महती भूमिका जरूर निभाएगा।
कोई आदमी भले ही इस तकनीक के बारे में सुनकर गटर किनारे ना बैठे लेकिन इस तकनीक को अपनाने और घर में एक बायोगैस प्लांट लगाने की सोचता है तो इससे नुकसान क्या है?
मुश्किल यही है कि एक चायवाला इतना बखूबी समझता है लेकिन पढ़े-लिखे अनपढ़ नही।
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मैं कोई भाजपा विचारक या प्रवक्ता तो नही हूँ। मेरा काम तो बस शैक्षिक मुद्दों पर लोगों को जागरूक करना है।
तय तो आप करिये कि विरोध है किससे?
जागरूकता से...
या मोदी से???
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With Love...
झकझकिया
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