●Filial Infanticide & Cannilibism In Animal Kingdom●
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दिसंबर, 2013 का वक़्त था।
वाशिंगटन (अमेरिका) में स्थित स्मिथसोनियन राष्ट्रीय चिड़ियाघर में "ख़ाली" नामक मादा भालू अपने बच्चों को जन्म दे रही थी। सीसी कैमरा पर ख़ाली को प्रसव से गुजरते देख रहे चिडियाघर के कर्मचारी उसके बच्चों के दीदार के बेहद उत्सुक थे।
अचानक ख़ाली ने अपने पहले बच्चे को जन्म दिया। हथेली के आकार के शिशु को दुनिया मे आते देख प्रसन्नता से कर्मचारीगण एक-दूसरे को मुबारकबाद दे ही रहे थे कि अचानक ख़ाली अपना मुंह नवजात शिशु के पास ले गई।
कर्मचारियों को लगा कि शायद खाली अपने बच्चे को जीभ से सहला कर ममतावश दुलार करना चाहती होगी।
लेकिन नही...
ख़ाली ने कुछ देर पहले जन्म दिए अपने ही बच्चे को निष्ठुरतापूर्वक खा लिया।
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हैरान कर्मचारियों ने उसके बाद ख़ाली को दो और बच्चों को जन्म देते देखा। एक हफ्ते तक सब ठीक रहा। उसके बाद 6 जनवरी, 2014 को ख़ाली ने अपने दूसरे बच्चे को भी खा लिया और तीसरे को खाने की कोशिश कर ही रही थी कि कर्मचारियों ने हस्तक्षेप कर बच्चे को अपने संरक्षण में ले लिया।
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ख़ाली के बच्चे को तुरंत अस्पताल ले जाया गया जहां डॉक्टरी जांच में पता चला कि बच्चा कई गंभीर संक्रमणों से ग्रस्त है। आधुनिक दवाइयों ने बच्चे की जान तो बचा ली लेकिन चिड़ियाघर के कर्मचारी अब भी प्रकृति के सबसे क्रूर सत्य के साक्षात्कार से हैरान, इस बात का जवाब तलाश रहे थे कि...
एक माँ आखिर अपने बच्चों को क्यों खाएगी?
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अगर नवजात बीमार है तो उसे मार डालने और अक्सर खा भी लेने की प्रवृति पक्षी, कीड़े, मछली, वानर, सिंह, सर्प आदि लगभग-लगभग पृथ्वी की हर प्रजाति में पाई गई है।
अक्सर कई प्रजातियाँ शत्रु का आक्रमण होने पर अंडों की रक्षा कर पाने में असमर्थ होने के कारण खुद ही अपने अंडों को खा लेती हैं। तो इससे हासिल किया होता है?
जाहिर है... पोषण !!!
एक शत्रु का भोजन बनने से अच्छा है कि अंडे माँ का ही भोजन बने, जिससे उसे ऊर्जा प्राप्त हो और वो अगली बार माँ बनने का मार्ग प्रशस्त कर पाये!!
बीमार नवजात शिशुओं को पालना और उनकी शत्रुओं से रक्षा करना जानवरों के लिए बेहद मुश्किल होता है। बच्चे के शव मांस सड़ने के कारण दूसरे खतरनाक जानवरों को आकर्षित करते हैं इसलिए अपवादों को छोड़ सभी जीव अपनी कमजोर औलादों का स्वयं ही मार डालते हैं।
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जीव जगत में शिशु हत्या का एक अन्य सबसे बड़ा कारण "वंशवृद्धि" की जंग है। ज्यादातर जानवर दूसरे झुंड पर हमला कर, झुंड के मुखिया का परास्त करके, झुंड में मौजूद सभी बच्चों का कत्लेआम करते हैं ताकि बच गई मादाओं से अपने बच्चे पैदा कर सकें। शेर इसका बेहतरीन उदाहरण हैं।
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शिशुहत्या के मामलें में हम इंसानों का रिकॉर्ड भी कोई खास बेहतर नही है। कभी बलि के लिए तो कभी दहेज बचाने के लिए तो कभी विवाह पूर्व गर्भधारण कर लेने की कथित बदनामी से बचने के लिए तो कभी शिशु के भरण-पोषण की आर्थिक असमर्थता जैसे विभिन्न सामाजिक-व्यक्तिगत कारणों से हम कोखों का कत्ल करते रहे हैं।
पर फिर भी मुझे जो खयाल रोमांचित करता है वो यह है इन असफलताओं के बावजूद सिर्फ हम इंसान ही वो प्रजाति हैं जो कमजोरों की रक्षा के लिए जीवनरक्षक दवाइयां बनाते हैं, शारीरिक रूप से असमर्थ लोगों की मदद के लिए बेहतर तकनीक बनाते हैं।
इतिहास में करोड़ों मनुष्यों को कालकवलित कर देने वाले ना जाने कितने असाध्य रोगों को हमनें धूल चटाई है। सिर्फ इंसान ही एकलौता जीव है जिसने लिंग, धर्म, जाति से परे हर तबके के इंसानों के जीवन की सुरक्षा के लिए कानून बनाये हैं।
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प्रेम तत्व का मायाजाल बेहद विचित्र है।
प्रेम तत्व का प्राकट्य हुआ ताकि परिवार संस्था के अंतर्गत लोग अपने जैसे जीवों से लगाव रखते हुए प्रकृति के एकमात्र उद्देश्य "वंशवृद्धि" का निर्वहन कर सकें।
पर प्रकृति के खेल बेहद निष्ठुर हैं। प्रकृति का प्रेम उन्हें ही हासिल होता है जो शक्तिशाली हैं। प्रकृति कमजोरों का नामोनिशान स्वयं ही मिटा देती है.
पर ढेरों असफलताओं के बावजूद हम इंसान शायद फिर भी महान कहलाने योग्य है क्योंकि सिर्फ हम ही एकलौती ऐसी प्रजाति है...
जिसने कुदरत के बनाये दस्तूरों को तोड़ कर "निर्बलों" को भी जीवन का अधिकार दिया है।
Well...Truly Homo Sapiene Act !!
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And As Always
Thanks For Reading
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