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Friday, 14 September 2018

कल हर तरफ शोर था कि सीवर गैस से चूल्हा कैसे जल

 Kavita house     04:35     No comments   

कल हर तरफ शोर था कि सीवर गैस से चूल्हा कैसे जल सकता है? अब जब ये साफ हुआ कि सीवर गैस के इस्तेमाल से दुनिया मे अनेकों लोग, इंडस्ट्रीज़, कारपोरेशन ऊर्जा उत्पन्न कर रहे हैं तो बहस का मुद्दा ये हो गया कि मोदी का तरीका गलत था।
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मैंने प्रधानमंत्री का वीडियो देखा। प्रधानमंत्री ने किसी युवक का उल्लेख करते हुए कहा कि युवक ने नाली (पहले नाली कहा, फिर गटर) से पाइप के द्वारा किसी पात्र में गैस इकट्ठी की और चूल्हा जला लिया। औऱ बक़ौल मोदी अक्सर ये गैस लोग टायर ट्यूब में भर के इस्तेमाल भी करते हैं।
टायर, ट्यूब में गैस भरना कोई बड़ी बात नही है। कई लोग करते हैं। यह टायर कितने हैवी ऍप्लिकेशन्स में काम आ सकता है, यह बहस का मुद्दा है।
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दूसरी बात... एक चलती नाली से मीथेन इकट्ठी करना अव्यवहारिक ही प्रतीत होता है। ज्यादातर मीथेन प्रोडक्शन सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट्स द्वारा बन्द सिस्टम्स में किया जाता है।
मोदी की कहानी के नायक की सफलता के पीछे का तकनीकी पक्ष मैं नही जानता कि उसने ये प्रयोग कहाँ किया लेकिन रुके हुए पानी वाले किसी गटर या मैनहोल में पाइप डालकर मीथेन इकट्ठी करना कोई असंभव बात नही है। मीथेन की Yield हर जगह एक जैसी नही होती। पानी मे आर्गेनिक वेस्ट बढाकर, फर्मेंटेशन की प्रक्रिया को तेज करके मीथेन प्राप्ति की दर बढाई जा सकती है और प्राप्त गैस को बेहद सामान्य सेटअप द्वारा किसी कंटेनर में आराम से इकट्ठा किया जा सकता है। गैसोमीटर से ट्रैक किया जा सकता है कि कितनी मीथेन प्राप्त हो रही है। सिर्फ 0.3 से 0.9 घनमीटर गैस एक चूल्हा जलाने के लिए और 0.1 से 0.15 घनमीटर गैस एक लैंप को रोशन करने के लिए काफी है।
इसमें मुझे कुछ भी अवैज्ञानिक प्रतीत नही होता।
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जहां तक मोदी की बात है तो बेशक ऐसा नही होता कि आप इधर पाइप गटर में डालें और उधर चूल्हा जल जाए। हर चीज की एक प्रोसेस होती है। मुझे लगता है कि मोदी ने एक घटना का सामान्यीकरण मात्र किया है जिसे बहुत तूल देने की जरूरत नही है। एक सार्वजनिक मंच से किसी वैज्ञानिक प्रक्रिया के सभी तकनीकी पक्ष डिस्कस भी नही जा सकते।
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बहरहाल... एक चाय वाला कम से कम लोगों को एक वैज्ञानिक तकनीक के प्रति प्रेरित कर रहा है तो उससे विरोध क्यों? जाहिर है कि हर आदमी गटर के पास स्टोव लेकर नही बैठ जाएगा
लेकिन... तकनीक के प्रति लोगों की रुचि विकसित करना और वैज्ञानिक दृष्टिकोण का प्रचार-प्रसार राष्ट्रनिर्माण में महती भूमिका जरूर निभाएगा।
कोई आदमी भले ही इस तकनीक के बारे में सुनकर गटर किनारे ना बैठे लेकिन इस तकनीक को अपनाने और घर में एक बायोगैस प्लांट लगाने की सोचता है तो इससे नुकसान क्या है?
मुश्किल यही है कि एक चायवाला इतना बखूबी समझता है लेकिन पढ़े-लिखे अनपढ़ नही।
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मैं कोई भाजपा विचारक या प्रवक्ता तो नही हूँ। मेरा काम तो बस शैक्षिक मुद्दों पर लोगों को जागरूक करना है।
तय तो आप करिये कि विरोध है किससे?
जागरूकता से...
या मोदी से???
*************
With Love...
झकझकिया
शेयर करने के लिए इजाजत की जरूरत नही है।

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Filial Infanticide & Cannilibism In Animal Kingdom●

 Kavita house     04:34     No comments   

●Filial Infanticide & Cannilibism In Animal Kingdom●
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दिसंबर, 2013 का वक़्त था।
वाशिंगटन (अमेरिका) में स्थित स्मिथसोनियन राष्ट्रीय चिड़ियाघर में "ख़ाली" नामक मादा भालू अपने बच्चों को जन्म दे रही थी। सीसी कैमरा पर ख़ाली को प्रसव से गुजरते देख रहे चिडियाघर के कर्मचारी उसके बच्चों के दीदार के बेहद उत्सुक थे।
अचानक ख़ाली ने अपने पहले बच्चे को जन्म दिया। हथेली के आकार के शिशु को दुनिया मे आते देख प्रसन्नता से कर्मचारीगण एक-दूसरे को मुबारकबाद दे ही रहे थे कि अचानक ख़ाली अपना मुंह नवजात शिशु के पास ले गई।
कर्मचारियों को लगा कि शायद खाली अपने बच्चे को जीभ से सहला कर ममतावश दुलार करना चाहती होगी।
लेकिन नही...
ख़ाली ने कुछ देर पहले जन्म दिए अपने ही बच्चे को निष्ठुरतापूर्वक खा लिया।
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हैरान कर्मचारियों ने उसके बाद ख़ाली को दो और बच्चों को जन्म देते देखा। एक हफ्ते तक सब ठीक रहा। उसके बाद 6 जनवरी, 2014 को ख़ाली ने अपने दूसरे बच्चे को भी खा लिया और तीसरे को खाने की कोशिश कर ही रही थी कि कर्मचारियों ने हस्तक्षेप कर बच्चे को अपने संरक्षण में ले लिया।
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ख़ाली के बच्चे को तुरंत अस्पताल ले जाया गया जहां डॉक्टरी जांच में पता चला कि बच्चा कई गंभीर संक्रमणों से ग्रस्त है। आधुनिक दवाइयों ने बच्चे की जान तो बचा ली लेकिन चिड़ियाघर के कर्मचारी अब भी प्रकृति के सबसे क्रूर सत्य के साक्षात्कार से हैरान, इस बात का जवाब तलाश रहे थे कि...
एक माँ आखिर अपने बच्चों को क्यों खाएगी?
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अगर नवजात बीमार है तो उसे मार डालने और अक्सर खा भी लेने की प्रवृति पक्षी, कीड़े, मछली, वानर, सिंह, सर्प आदि लगभग-लगभग पृथ्वी की हर प्रजाति में पाई गई है।
अक्सर कई प्रजातियाँ शत्रु का आक्रमण होने पर अंडों की रक्षा कर पाने में असमर्थ होने के कारण खुद ही अपने अंडों को खा लेती हैं। तो इससे हासिल किया होता है?
जाहिर है... पोषण !!!
एक शत्रु का भोजन बनने से अच्छा है कि अंडे माँ का ही भोजन बने, जिससे उसे ऊर्जा प्राप्त हो और वो अगली बार माँ बनने का मार्ग प्रशस्त कर पाये!!
बीमार नवजात शिशुओं को पालना और उनकी शत्रुओं से रक्षा करना जानवरों के लिए बेहद मुश्किल होता है। बच्चे के शव मांस सड़ने के कारण दूसरे खतरनाक जानवरों को आकर्षित करते हैं इसलिए अपवादों को छोड़ सभी जीव अपनी कमजोर औलादों का स्वयं ही मार डालते हैं।
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जीव जगत में शिशु हत्या का एक अन्य सबसे बड़ा कारण "वंशवृद्धि" की जंग है। ज्यादातर जानवर दूसरे झुंड पर हमला कर, झुंड के मुखिया का परास्त करके, झुंड में मौजूद सभी बच्चों का कत्लेआम करते हैं ताकि बच गई मादाओं से अपने बच्चे पैदा कर सकें। शेर इसका बेहतरीन उदाहरण हैं।
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शिशुहत्या के मामलें में हम इंसानों का रिकॉर्ड भी कोई खास बेहतर नही है। कभी बलि के लिए तो कभी दहेज बचाने के लिए तो कभी विवाह पूर्व गर्भधारण कर लेने की कथित बदनामी से बचने के लिए तो कभी शिशु के भरण-पोषण की आर्थिक असमर्थता जैसे विभिन्न सामाजिक-व्यक्तिगत कारणों से हम कोखों का कत्ल करते रहे हैं।
पर फिर भी मुझे जो खयाल रोमांचित करता है वो यह है इन असफलताओं के बावजूद सिर्फ हम इंसान ही वो प्रजाति हैं जो कमजोरों की रक्षा के लिए जीवनरक्षक दवाइयां बनाते हैं, शारीरिक रूप से असमर्थ लोगों की मदद के लिए बेहतर तकनीक बनाते हैं।
इतिहास में करोड़ों मनुष्यों को कालकवलित कर देने वाले ना जाने कितने असाध्य रोगों को हमनें धूल चटाई है। सिर्फ इंसान ही एकलौता जीव है जिसने लिंग, धर्म, जाति से परे हर तबके के इंसानों के जीवन की सुरक्षा के लिए कानून बनाये हैं।
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प्रेम तत्व का मायाजाल बेहद विचित्र है।
प्रेम तत्व का प्राकट्य हुआ ताकि परिवार संस्था के अंतर्गत लोग अपने जैसे जीवों से लगाव रखते हुए प्रकृति के एकमात्र उद्देश्य "वंशवृद्धि" का निर्वहन कर सकें।
पर प्रकृति के खेल बेहद निष्ठुर हैं। प्रकृति का प्रेम उन्हें ही हासिल होता है जो शक्तिशाली हैं। प्रकृति कमजोरों का नामोनिशान स्वयं ही मिटा देती है.
पर ढेरों असफलताओं के बावजूद हम इंसान शायद फिर भी महान कहलाने योग्य है क्योंकि सिर्फ हम ही एकलौती ऐसी प्रजाति है...
जिसने कुदरत के बनाये दस्तूरों को तोड़ कर "निर्बलों" को भी जीवन का अधिकार दिया है।
Well...Truly Homo Sapiene Act !!
*********************************
And As Always
Thanks For Reading

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Death From Fear: Myth Or Fact?●

 Kavita house     04:31     No comments   

●Death From Fear: Myth Or Fact?●
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अगर आप किसी जंगल से गुजर रहे हैं और अचानक एक खूँखार शेर आपके सामने आ कर खड़ा हो जाये तो आपका रिस्पांस क्या होगा?
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खतरा सामने आते ही शरीर द्वारा दी गई त्वरित प्रतिक्रिया को "Flight Or Fight Response" कहते हैं। बेसिकली होता यह है कि जीवन पर मंडराते किसी भी खतरे को महसूस करते ही हमारा नर्वस सिस्टम शरीर मे भारी मात्रा में "एड्रीनलीन" नामक केमिकल को रिलीज करता है।
यह केमिकल आपके दिल की कोशिकाओं को भारी मात्रा में कैल्शियम Ions की आपूर्ति करता है जिसके कारण आपके दिल की मसल्स तेजी से सिकुड़ती हैं। दिल की धड़कने अनियंत्रित रूप से बढ़ जाती हैं जिस कारण शरीर में रक्त का प्रवाह तेज हो जाता है। आपकी पुतलियां फैल जाती हैं ताकि वे ज्यादा से ज्यादा प्रकाश को अवशोषित कर सकें और अंधेरे में आपको देखने मे दिक्कत नही हो। आपका इम्यून सिस्टम और पाचन तंत्र टेम्पररी तौर पर शट डाउन हो जाता है ताकि आप शरीर मे उपलब्ध ऊर्जा का ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल कर सकें।
और इस प्रकार आपका मस्तिष्क आपको संभावित मृत्यु के विरुद्ध संघर्ष के लिए तैयार कर चुका होता है इस चेतावनी के साथ कि..
या तो लड़िये !!!
या जोर लगा कर भागिए !!!
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फाइट-फ्लाइट रिस्पांस एवोलुशनरी मानकों पर खतरे की स्थिति में हमारे लिए बेहद फायदेमंद है। इसी कारण अक्सर विषम परिस्थितियों में बेहद कमजोर इंसान भी अपनी क्षमताओं से बढ़कर ताकत का प्रदर्शन करते पाये गए हैं।
पर..
चूंकि "एवोलुशन एक सर्वश्रेष्ठ प्रक्रिया नही है"... इस कारण फ्लाइट-फाइट रिस्पांस का एक साइड इफ़ेक्ट भी है।
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एड्रीनलीन नामक केमिकल बेहद खतरनाक होता है और इसकी ज्यादा डोज से दिल की संरचना बिगड़ने और अनियंत्रित रक्तचाप के कारण अंततः हार्ट फेल होने का खतरा रहता है।
यही कारण है कि "सिर्फ डर जाने के कारण भी व्यक्ति की मृत्यु संभव है"
ना केवल डर जाने बल्कि किसी भी बेहद अधिक उत्तेजना वाली स्थिति जैसे कि लॉटरी टिकट जीतने की खुशी, किसी हृदय विदारक घटना को देखना,  संभोग, धार्मिक-दैवीय अनुभवों आदि जैसी स्थितियों में भी व्यक्ति मर सकता है बशर्ते अगर व्यक्ति का "दिल कमजोर है"
यानी एक अस्वस्थ व्यक्ति के उत्तेजना से मरने के चांस एक स्वस्थ व्यक्ति के मुकाबले ज्यादा होते हैं।
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तो अगली बार.. अपने दादा जी से मजाक करते वक़्त थोड़े चौकन्ने रहिएगा !!!
You Never Know !!!
Be Careful Next Time When You Are Planning To BOOOO Your GrandPa !!!
*************************************
And As Always
Thanks For Reading !!!
#झकझकिया

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समलैंगिकता के जेनेटिक कारण क्या हैं? ●Is There A Gay Gene?●

 Kavita house     04:30     No comments   

समलैंगिकता के जेनेटिक कारण क्या हैं?
●Is There A Gay Gene?●
समलैंगिकता: अपराध या चुनाव?
●A Deep Insight On Homosexuality●
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अगर आप मोबाइल, कंप्यूटर, लैपटॉप जैसे किसी भी यंत्र का इस्तेमाल करते हैं तो इसके लिए आपको आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस के पितामह "एलन ट्यूरिंग" का शुक्रगुजार होना चाहिये।
23 जून, 1912 को लंदन में जन्में ट्यूरिंग शताब्दियों में जन्म लेने वाले व्यक्ति थे। एलन ट्यूरिंग ने ही मानवता को सूचनाओं के मैथमेटिकल पैटर्न्स के बारे में सिखाया। एलन ने द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान एडोल्फ हिटलर की सेनाओं द्वारा भेजे जाने वाले कूट संदेशों को पकड़ने और डिकोड करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। कहा जाता है कि अकेले ट्यूरिंग के कारण मानवता का संहार करने पर तुला हिटलर यह युद्ध समय से 5 वर्ष पहले ही हार गया था।
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एक शानदार व्यक्तित्व होने के बावजूद एलन ट्यूरिंग 7 जून, 1954 को अपने कमरे में एक जहरीले अधखाये सेब के साथ मृत मिले थे। ट्यूरिंग ने आत्महत्या की थी।
वजह?
वजह यह थी कि ट्यूरिंग एक समलैंगिक थे।
समलैगिक होना उन दिनों अपराध था। अपने कमरे में एक मर्द साथी के साथ पाये जाने पर ट्यूरिंग पर एक ब्रिटिश अदालत में मुकदमा चलाया गया।
जेल जाने की बजाय मजबूरी में उन्होंने सजास्वरूप हार्मोन्स के इंजेक्शन लेना स्वीकार कर लिया जिस कारण उनकी मर्दानगी जाती रही और वक्ष स्त्रियों के समान विकसित हो गए।
लगातार दो वर्षों तक गंभीर मानसिक प्रताड़ना, अवसाद और अपमान से गुजरने के बाद आखिरकार इस बेहतरीन इंसान ने अपने जीवन का अंत कर लिया।
अपने जीते जी एलन ने किसी का बुरा नही किया। अपने प्रयासों से लाखों जिंदगियां बचाने वाले और अपने अविष्कारों से मानवता को नयी दिशा देने वाले इस महान वैज्ञानिक का एकमात्र अपराध समलैंगिक होना था।
क्या समलैगिंकता वाकई अपराध है?
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समलैंगिकता के जेनेटिक कारणों की तलाश में वैज्ञानिक लंबे समय से प्रयासरत हैं। 1993 में डीन हैमर नामक वैज्ञानिक ने एक्स क्रोमोजोम के जेनेटिक मार्कर XQ28 और क्रोमोजोम नम्बर 8 के एक विशेष हिस्से की खोज की थी जिसे उन्होंने मनुष्यों में समलैंगिकता का कारण बताया था। 2014 में माइकल बैली ने 409 समलैंगिक जोड़ों के जीनोम पर शोध करके डीन हैमर के दावों की पुष्टि की है।
नार्थ शोर युनिवेर्सिटी (इलिनॉय) के एलन सैंडर ने 1077 समलैंगिक तथा 1231 स्ट्रैट व्यक्तियों के जीनोम पर शोध करके दो जीन को खोजा है। उनमें से क्रोमोजोम नम्बर 13 पर मौजूद जीन SLITRK6 मस्तिष्क के हाइपोथेलेमस हिस्से से संबंध रखती है तथा दूसरी जीन TSHR थाइरोइड नामक अंग से संबंध रखती है। वैज्ञानिकों का मानना है कि ये दो जीन मनुष्यों में यौन चुनाव में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती हैं।
यह निश्चित तौर पर नही कहा जा सकता कि यौन चुनाव को एक सिंगल जीन प्रभावित करती हैं अथवा जीन्स का समूह पर इस बात पर सभी वैज्ञानिक एकमत हैं कि समलैंगिकता का उदय डीएनए में होता है और यह पूरी तरह प्राकृतिक है।
इसमें किसी व्यक्ति का क्या दोष?
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मैं आपको बता दूं कि अब तक कुत्ता, बिल्ली, कीड़े, मछली, वानर, शेर, पक्षी आदि विभिन्न वर्ग के 1450 से ज्यादा जैव प्रजातियों पर शोध किया जा चुका है और 100% एक्यूरेसी के साथ समलैंगिक व्यवहार हर प्रजाति में पाया गया है। पृथ्वी की एक सिंगल प्रजाति भी ऐसी नही है जिसके कुछ प्राणी समलैंगिक नही हो। आखिर किस मुंह से हम समलैंगिकता को अप्राकृतिक घोषित करते हैं? क्या प्रकृति मूर्ख है जो हर प्रजाति में समलैंगिक जीवों को जन्म दे रही है?
क्या हम प्रकृति से भी बड़े हो गए हैं?
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यहां एक विरोधाभास खड़ा हो उठता है। हम जानते हैं कि प्रकृति का एकमात्र ध्येय सर्वाइवल और रिप्रोडक्शन है। जाहिर हैं कि समलैंगिक अन्य लोगों के मुकाबले कम बच्चे पैदा करते हैं उसके बावजूद प्रकृति वंशवृद्धि में असमर्थ इस प्रवृत्ति को निरंतर क्यों ढो रही है? कहीं ऐसा तो नही कि होमोसेक्सयूएलिटी सामाजिक तौर पर प्रकृति के दूसरे ध्येय "सर्वाइवल" में मदद करती रही है? इस विषय पर जल्द एक पोस्ट करूँगा।
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आज के लिए सिर्फ इतना ही कहूंगा कि अपने अज्ञान को ईश्वरीय कानूनों की संज्ञा देकर अपनी ही प्रजाति के मनुष्यों के प्रति घृणा का महोत्सव बन्द हो।
अगर समलैंगिकता वाकई अपराध होती तो मुझे बताइये कि क्यों किसी भी भारतीय धर्मग्रंथ वेद, पुराण आदि में समलैंगिकता के विरोध में एक भी लाइन मौजूद नही है? क्या इतनी गंभीर बीमारी के परिपेक्ष्य में हमारे पूर्वज छोटी सी भी नसीहत देना भूल गए? शायद इंसानी संवेदनाओं को समझने में वे हमसे कहीं ज्यादा परिपक्व थे।
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वेदों का उद्घोष है।
विकृति एवं प्रकृति !!
जो अप्राकृतिक प्रतीत होता है, वह भी प्राकृतिक है। बस नजरिये का फर्क है।
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मैं हमेशा कहता हूँ हमनें ये खूबसूरत चांद, सितारे, झरनें, पहाड़, फूल, खुशबू, ब्लैकहोल्स, न्यूट्रान, प्रोटान नही बनाये हैं पर इस दुनिया की बेहतरी के लिए फैसले बेशक हम लेते हैं।
मैं न्यायतंत्र द्वारा सहमति से बनाये वयस्क समलैंगिक संबंधों को अपराध घोषित करने वाली धारा को निरस्त करने के फैसले का स्वागत करता हूँ।
आइये, एक बेहतर दुनिया मे आपका स्वागत है जहां परंपराओं के नाम पर, अज्ञान के नाम पर किसी और ट्यूरिंग को जान नही गंवानी पड़ेगी।
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समलैंगिकता के जेनेटिक कारण क्या हैं? ●Is There A Gay Gene?●

 Kavita house     04:29     No comments   

समलैंगिकता के जेनेटिक कारण क्या हैं?
●Is There A Gay Gene?●
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सुप्रीम कोर्ट द्वारा समलैंगिकता को अपराध मुक्त करने के बाद मैं देख रहा हूँ कि समलैंगिकों के खिलाफ अतिरंजित चुटकुलों की बाढ़ आ गई है। एक एजुकेशनिस्ट होने के नाते मेरा काम किसी भी मुद्दे के वैज्ञानिक पक्ष पर रोशनी डालना है। चुटकुलों से इतर इस व्यवहार पर सार्थक चर्चा के इच्छुक मित्रों के लिए मैं इस विषय पर उपलब्ध वैज्ञानिक जानकारियों को इस लेख में प्रस्तुत कर रहा हूँ। चूंकि स्त्री समलैंगिकता पर बहुत अधिक शोध अभी नही हुए हैं इसलिये यह लेख सिर्फ पुरूष होमोसेक्सुअलिटी पर है।
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विश्व के कई केसेस में पाया गया है आइडेंटिकल जुड़वा बच्चों में भी एक बच्चा गे हो सकता है तो दूसरा सामान्य जबकि दोनों समान जींस धारण करते हैं। तो जाहिर है कि समलैंगिकता का कारण कोई जीन विशेष नही।
तो क्या कारण है?
उत्तर है एपीजेनेटिक्स (Epigenetics)
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इसे समझने के लिए हमें DNA Methylation नामक प्रक्रिया को समझना पड़ेगा। इस प्रक्रिया के अंतर्गत कार्बन और हाइड्रोजन अणुओं के कुछ समूह (Methyl Groups) डीएनए में जुड़ जाते हैं जिससे डीएनए सीक्वेंस समान रहने के बावजूद प्राणियों में एक नये व्यवहार का प्राकट्य होता है।
इसका एक आसान उदाहरण चींटियां हैं जो एक समान जीनोम से जन्म लेती हैं बावजूद उसके Methylation रूपी जेनेटिक मार्कर्स के कारण चींटियों में "वर्कर-रानी-सोल्जर" जैसी क्लास का प्राकट्य होता है।
वैज्ञानिकों ने पाया है कि किसी गे अथवा स्ट्रेट व्यक्ति के सेक्सुअल जीन्स में कोई खास फर्क नही होता बल्कि गे की जीन्स के कुछ हिस्से Methylation के कारण एक्टिव होते हैं तो एक सामान्य आदमी के सुसुप्त। वैज्ञानिक डीएनए के 9 क्षेत्रों में Methylation Patterns का अध्ययन करके लोगों की यौन प्रवृति की भविष्यवाणी करने में सफल हो चुके हैं जो इस बात का मजबूत साक्ष्य है कि यौन व्यवहार व्यक्ति के डीएनए में है।
इसका एक अर्थ यह भी है कि समलैंगिकता का रॉ मैटेरियल हम सभी के अंदर जन्म से ही मौजूद है।
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तो क्या समलैंगिकता कोई बीमारी है?
बीमारी बाहरी कारणों (केमिकल्स-बैक्टेरिया) आदि के अतिक्रमण से उत्पन्न हुई एक जीवनघाती परिणाम है जबकि समलैंगिकता व्यक्ति के मूल डीएनए स्ट्रक्चर का हिस्सा। ना ही किसी समलैंगिकता के कारण आज तक किसी व्यक्ति के शरीर मे कोई जीवनघाती नकारात्मक प्रभाव उत्पन्न हुए हैं तो आखिर सिर्फ एक अलग यौन व्यवहार प्रदर्शित करने वाले व्यक्ति को बीमार कहने का हमें क्या हक है?
मेरे ख्याल से इसे बीमारी की बजाय सेक्सुअल माइनॉरिटी कहना ज्यादा उचित होगा।
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क्या होमोसेक्सुअलिटी के कारण एड्स फैलता है?
नही... जिसको एड्स है वो चाहें गुदासेक्स करें अथवा योनि के द्वारा। एड्स दोनों ही स्थिति में फैलेगा। गुदासेक्स पहले से ही विश्व की एक बड़ी आबादी द्वारा प्रैक्टिस किया जाता है। इसमें कोई नयी बात नही।
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क्या जीन एडिटिंग द्वारा समलैंगिकता को खत्म किया जा सकता है?
शायद हां। भविष्य में जीन एडिटिंग द्वारा मनचाहे मानवों को जन्म दिया जा सकेगा लेकिन जीन एडिटिंग द्वारा एक अलग यौन व्यवहार धारण करने वाले किसी समूह को नैतिकता के नाम पर खत्म कर देना एक बड़ी बहस को जन्म देगा। विकृति और बीमारी में फर्क होता है।
हमें क्या हक कि हम किसी चीज को विकृति कह कर बीमारी की संज्ञा दें अगर वो व्यवहार हमारी प्रकृति के अनुरूप नही?
क्या हो अगर भविष्य में वैज्ञानिक और तकनीकी सत्ता के दम पर समलैंगिकों का समूह हमें "विकृत" करार देकर हमारा अस्तित्व मिटा देने की सोचें?
ये प्रश्न गंभीर हैं। विचारणीय भी। इनके उत्तर भविष्य के गर्भ में छुपे हैं।
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तो अगर रिप्रोडक्शन ही प्रकृति का मूलमंत्र है और जाहिर है कि होमोसेक्सअल अन्य लोगों के मुकाबले विपरीत सेक्स में कम शादी करते है तो जन्मदर कम होने के बावजूद प्रकृति रिप्रोडक्शन के मानकों पर असफल इस व्यवहार को क्यों ढो रही है? कहने को आधिकारिक रूप से विश्व की 5 से 15% जनसंख्या समलैंगिक है लेकिन सामाजिक परिस्थितियों के कारण मुंह नही खोल पाने के कारण ये आंकड़े सही नही है। वास्तविकता इससे कहीं अधिक विशाल है। आज हर 5 में से एक आदमी अंदरूनी तौर पर गे रूप में जन्म ले रहा है। यहां ध्यान रखिये गे होने का एकमात्र अर्थ गुदामैथुन करने से नही बल्कि पुरुष में Feminine Psychological Behaviour से भी है।
मनुष्यों के अतिरिक्त पृथ्वी पर पायी जाने वाली प्रत्येक जैवप्रजाति में भी समलैंगिक यौन व्यवहार क्यों परिलक्षित होता है?
यह एक समस्या है जिसने वैज्ञानिकों का दिमाग घुमा रखा है और इसका कोई ठीक-ठाक जवाब फिलहाल उपलब्ध नही है।
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कई सर्वेक्षणों में पाया गया है कि समलैंगिक Social Bonding, Empathy, Careness के मानकों पर बेहद खरे पाये गए हैं तथा दूसरों की पीड़ा बेहतर रूप से समझते हैं। विकासक्रम के दौरान मानव बस्तियां बसाकर सामाजिक रूप से विकसित होती इंसानी सभ्यताओं में परिवारों को जोड़ने में समलैंगिकों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई हो सकती है। आज भी कई स्टडी में पाया गया है कि समलैंगिकों के परिवार की महिलाओं में जन्म दर अधिक होती है और समलैंगिक स्वयं संतानोत्पत्ति नही करके अपने आसपास मौजूद महिलाओं का ध्यान रखने और उनके बच्चों के लालन-पोषण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते देखे गए हैं।
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कई सर्वेक्षणों के अनुसार हर औलाद के बाद परिवार में एक गे संतान उत्पन्न होने की प्रायिकता 33% बढ़ जाती है। ज्यादातर केसेस में 3-4 संतान के बाद गर्भवती महिला ऐसे हार्मोन्स का स्त्राव करती है जो उसके अगले बच्चे में समलैंगिकता के जेनेटिक मार्कर्स को एक्टिवेट कर देते हैं ताकि वो संतान स्वयं संतान उत्पन्न नही करके अपने सामाजिक ताने-बाने को सुदृढ करने और अपने भाई-बहनों की संतानों तथा माँ का ख्याल रखने में भूमिका निभाये।
क्या होमोसेक्सयूलिटी प्रकृति द्वारा निर्धारित कोई Secret Qualitative Population Control Program हो सकता है?
शायद...
तो क्या समलैंगिक होना ही सामान्य से बेहतर है? ऐसा भी नही... क्योंकि ऐसा होता तो प्रकृति में सिर्फ समलैंगिक ही पाये जाते।
बेहतर शोधों के साथ इस विषय पर हम बेहतर जान पाएंगे।
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सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद यूं लगा मानों देश में, स्कूलों में, पाठ्यक्रम में, पारिवारिक संस्थाओं में होमोसेक्सुअलिटी एक अनिवार्य प्रैक्टिस घोषित कर दी गई हो।
"गांडू-छक्के" जैसे विशेषणों से समलैंगिकों को नवाजती अतिरंजित पोस्टों की बाढ़ आ गई।
आखिर अपनी ही प्रजाति के मनुष्यों से घृणा का यह महोत्सव भारत के अलावा कहाँ उपलब्ध होगा?
आखिर इतनी नफरत का सैलाब उनके लिये क्यों जो यह जानते भी नही कि प्रकृति ने उन्हें हम सबसे अलग क्यों बनाया है?
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हमनें उनपर एहसान कर दिया कि बिना बेइज्जत हुए रहना है तो अपने बेडरूम में रहो। आइडेंटिटी पॉलिटिक्स मत खेलों।
मैं पूछता हूँ कि आखिर क्या गुनाह है एक समलैंगिक का कि उसे वसुधैव कुटुंबकम का उद्घोष करने वाली, कण-कण को ईश्वरीय कृति बता कर प्रेम का संदेश देने वाली सभ्यता के नुमाईंदों के बीच सार्वजनिक रूप से इस स्वीकारोक्ति तक का अधिकार नही कि वो हम सब से अलग है?
समलैंगिकता कोई छूत की बीमारी नही जो समलैंगिक के सामने आने से फैल जाएगी और विश्व के सभी मानव सड़कों पर गुदामैथुन का पर्व मनाने को उद्यत हो जाएंगे।
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जीवविज्ञान की समझ नही? मनुष्यता की परिभाषा पता नही?
समाज द्वारा सदियों से आतंकित भय में जीते एक समुदाय की पीड़ा का आभास नही?
प्रकृति द्वारा उत्पन्न किये प्राणियों के प्रति करुणा का बोध नही?
तिस पर अहंकार खुद को सभ्य कहने का?
धिक्कार है !!!
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समाज को समलैंगिकता को स्वीकार करने में समय लग सकता है। समाज पहले भी कई वर्जनाओं को तोड़ आगे बढ़ा है। इस बार भी समाज अपनी राह स्वयं तलाश लेगा।
फिलहाल व्यक्तिगत रूप से मुझे किसी समलैंगिक से कोई खास समस्या नही है। मेरे व्यक्तिगत आकलन में वे सभी पूरी तरह नार्मल हैं।
.
मैंने किसी भी व्यक्ति की निजता, सम्मान, स्वतंत्रता से कभी समझौता नही किया है।
ना ही कभी भी करूँगा।
I Would Personally Never Call Something "Disorder" If That Is Not According To My Familiar Order !!!
***************************
And As Always
Thanks For Reading !!!
#झकझकिया

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